रिश्ते कई तरह के होते हैं....
ख़ून का रिश्ता...
दिल का रिश्ता...
रूह का रिश्ता...
इंसानियत का रिश्ता...
मग़र एक शख़्स से मेरा रिश्ता इन खांचों में नहीं बैठता। सच कहूं तो जिस इंसान की बात मैं कर रहा हूं, वो अगर होता तो शायद ये बता पाता कि आख़िर मेरा उससे क्या रिश्ता था...मगर वो आज दुनिया में है नहीं, चार बरस पूरे हो चुके हैं उसे इस जहां से रुख़सत हुए...वरना यक़ीनी तौर पर ये कह सकता हूं कि वो ये ज़रूर बता देता कि हमारा रिश्ता क्या है...
और एक मैं हूं, जो उस शख़्स के बारे में लिखना चाहता हूं कि जिससे रिश्ता क्या है पता नहीं, कि, उससे कब रिश्तों की आमदो-रफ़्त हुई याद नहीं। के मैं क्योंकर उस इंसान को अपना रिश्तेदार बताने पर आमादा हूं भला?
कोशिशें कितनी कीं, मगर समझ ही नहीं सका कि कि मोईन अख़्तर से आख़िर कौन सा, किस जनम का संबंध था मेरा...
वो हंसी, वो तंज़, वो मुस्कराहट, वो बनावटी रंज...जाने क्या कशिश थी के मोईन की हर बात, हर अदा, हर लफ़्ज़, एक रिश्ता बनाती चलती थी।
अब देखिए न, बातों बातों में पता चला कि मोईन से रूहानी रिश्ता था हमारा...मगर, हमारी उर्दू की टीचर कहती हैं कि रूहानी रिश्ते तो संतों-फक़ीरों से होते हैं तो लिहाज़ा रूहानी रिश्ते की ज़द में भी ये रिश्ता नहीं आता था
आख़िर हम अलग अलग मुल्क़ों के रहने वाले थे....
हमारे बीच सरहदों का फ़ासला था...
हम अलग अलग दौर की पैदाइश थे
हमारे दरमियान उम्र का फ़ासला था
हम अलग-अलग पैग़म्बरों को मानते थे
हमारे बीच मज़हब का फ़ासला था
मगर, ये दूरियां, ये फ़ासले, मिनटों में तय हो गए...जब भी मोईन को देखा...रूबरू तो कभी नहीं। ये तार्रुफ़ हमेशा ही डिजिटल रहा....
शुरुआत कब और कैसे हुई थी कुछ याद नहीं....
शायद, यू-ट्यूब पर दिलीप कुमार से जुड़े वीडियो खोज रहा था, जब दिलीप कुमार के अस्सी के दशक में पाकिस्तान के दौरे का एक वीडियो मिला...जिसमें मोईन अख़्तर, सायरा बानो से उनके साहब के बारे में पूछ रहे थे। मोईन अख़्तर की आवाज़, उनके बात करने का तरीक़ा, दिल को लुभा गया था...मासूमियत भरी मुस्कराहट के साथ मोईन, सायरा बानो से पूछ रहे थे, "...तो जब आप लोगों में झगड़ा होता है तो साहब मनाते हैं या फिर आप कोशिश करती हैं"...'साहब का ग़ुस्सा कैसा है...'
साहब, यानी दिलीप कुमार...
फिर आख़िर में ये कहना के...साहब से गुज़ारिश करूंगा कि वो ज़रा ग़ुस्सा कम किया करें....
https://www.youtube.com/watch?v=4Wxgv8zp21A
और आदत के मुताबिक़, यू-ट्यूब ने मोईन के तमाम दूसरे वीडियो नज़र कर दिए थे....मसलन, लूज़ टॉक का, स्टूडियो पौने तीन का, वग़ैरा...वग़ैरा...फिर उनके क्लासिक शो यस सर नो सर में मोईन का फ़रमाया वो जुमला...
मेरा पैग़ाम मुहब्बत है...मेरा पैग़ाम जहां तक पहुंचे...
https://www.youtube.com/watch?v=q9NZmYUpc1Y
एक बार जो यू-ट्यूब पर मोईन के फन का मुजाहिरा शुरू हुआ तो....सिलसिला बहुत दूर तक गया...
ख़ास तौर से लूज़ टॉक शो में उनके एक से बढ़कर एक किरदारों में बड़ी नेचुरल एक्टिंग...
वो लखनवी अंदाज़...
https://www.youtube.com/watch?v=AkwKdtxtROM
वो ठेठ बिहारी बोली
https://www.youtube.com/watch?v=JlYqliBMGM4
वो दिल्ली का कबाबवाला किरदार...
https://www.youtube.com/watch?v=8ca7EStxweI
वो बंगाली बाबू मोशाय...
https://www.youtube.com/watch?v=v1iPyBcppmA
रोज़ की लत सी हो गई थी कि रात को सोने से पहले मोईन अख़्तर का एक ड्रामा ज़रूर देख लूं...ख़ास तौर से क्लासिक...
लूज़ टॉक में मोईन अख़्तर ने यही कोई चार सौ किरदार निभाए...ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है...गिनेस बुक वाला...
क़रीब चार दशक लंबे करियर में मोईन ने बकरा किस्तों पर से लेकर...लूज़ टाक तक न जाने कितने रूप धरे...उन्हें बहुरूपिया कहें तो ज़्यादा मुनासिब रहेगा।
अब ज़रा, उनके असल रूप की बात करते हैं।
मोईन अख़्तर, पाकिस्तान के कराची के रहने वाले कलाकार थे। जिन्होंने हास्य से जुड़े बहुत से रोल किए...शुरुआत उमर शरीफ़ के साथ स्टेज शोज़ से हुई थी, फिर मशहूर टीवी नाटकों से जुड़ाव हुआ...मसलन बकरा किस्तों पर, बुड्ढा घर पे है वग़ैरा....
फिर पीटीवी पर उन्होंने बहुत से शोज़ की कंपेयरिंग की...
यस सर, नो सर...
पीटीवी के सालाना जलसों से लेकर, तमाम सार्वजनिक समारोहों में उद्घोषक की भूमिका...न जाने कितने इंटरव्यू...
पाकिस्तान टेलिविज़न के लिए अनवर मक़सूद के साथ मिलकर स्टूडियो ढाई, स्टूडियो पौने तीन जैसे कॉमेडी स्टेज शो किए...
फिर प्राइवेट टीवी चैनलों का दौर शुरू हुआ तो उनका सबसे मशहूर शो रहा लूज़ टाक...जिसमें चार सौ से ज़्यादा किरदारों को मोईन अख़्तर ने जिया...इनमें से बहुतेरे रोल भारतीय थे, मसलन सुषमा स्वराज का...मसलन बिशन सिंह बेदी का...
https://www.youtube.com/watch?v=r-oO1Pn4FWE
या फिर एक मद्रासी का...
https://www.youtube.com/watch?v=O_erjH5v9IA
और यू ट्यूब पर मोईन के वीडियो देखते देखते उनके रूहानी रिश्ता जुड़ गया था...हम न कभी मिले थे, और न कभी मिल सकेंगे...वो तो ये जानने से पहले ही दुनिया से रुख़सत हो गए थे कि मैं उनकी कला का शैदाई हो गया था...उनसे इश्क़ सा हो गया था...
लेकिन, ये रिश्ता ऐसा था, जो जुड़ने से पहले ही टूट चुका था...क्योंकि मेरे मोईन का मुरीद बनने से पहले ही वो इस दुनिया से कूच कर चुके थे...आज चार बरस हो गए...
आज ही के दिन साल 2011 में मोईन का इंतकाल हुआ था...मुझे यक़ीन है कि जितना पाकिस्तान में उनके फैन उन्हें मिस करते हैं, उतना ही हिंदुस्तान में भी उनके मुरीदों को उनकी कमी का एहसास होता होगा।
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