आज़ादी के बाद कभी ब्रिटेन हमारी दिलचस्पी का सबसे अहम देश हुआ करता था। आज अमेरिका है। हम हर तरह से अमेरिकी होने की कोशिश कर रहे हैं। खान-पान में, ओढ़ने-बिछाने में और बोल चाल के साथ लाइफस्टाइल में। हाल ही में वहां से बड़ी दिलचस्प ख़बर आई। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए किस पार्टी से कौन उम्मीदवार हो इसके लिए भी चुनाव होता है। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी में तो अभी बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन के बीच फ़ैसला होना बाक़ी है, लेकिन सत्ताधारी ग्रैंड ओल्ड रिपब्लिकन पार्टी ने फ़ैसला कर लिया है। वियतनाम वार के हीरो रहे जॉन मैक्केन को राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन उम्मीदवार तय किया गया है। ज़ईफ़ आदमी हैं। उम्र है 72 साल। क़रीब 6 साल युद्ध बंदी रहे हैं वियतनाम में। भागने की कोशिश की तो पकड़े गए। ख़ूब यातनाएं भुगतीं। इतने तंग आ गए कि जान देने की कोशिश की। फिर पकड़े गए, पिटाई हुई। मैक्केन का पूरा शरीर अब भी मानो उन दिनों की दास्तां कहता है। बुश के राष्ट्रपति बनने से पहले भी मैक्केन चुनावी अखाड़े में उतरे थे। तब उम्र कम थी। बुश के मुक़ाबले तो ख़ैर ज़्यादा थी। लेकिन जनता ने तब उन्हें पार्टी का प्रत्याशी नहीं बनाया। आठ बरस बाद बनाया है सो अब ज़ोश ख़रोश से जुटे हैं वोटरों को रिझाने में। इसी दौरान किसी ने छेड़ दिया उनकी उम्र का क़िस्सा। अमेरिका में इतनी उम्र में कोई राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की हिम्मत कम ही जुटाता है। लेकिन मैक्केन तो पुराने लड़ाके हैं। मगर, कुछ लोगों को उनका ये लड़ाकापन अखरता है। कहने लगे मैक्केन की तो उम्र बहुत ज़्यादा हो गई है, वो कई बीमारियों से पीड़ित हैं। ऐसा आदमी अमेरिका जैसा ताकतवर देश कैसे चलाएगा। सवाल मौजूं था। मैक्केन ने इसका जवाब दिया। उन्होंने अपनी सारी डॉक्टरी रिपोर्ट दुनिया के सामने रखी। उन्हें कौन सी बीमारियां हैं,शरीर का कौन सा अंग कमज़ोर हो चला है या फिर वो पूरी तरह फिट हैं, ये फ़ैसला लोगों को उनकी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर करना था। मैक्केन की इस मारक चाल से उम्र की तोहमत लगाने वालों की बोलती बंद हो गई। अब मज़े से प्रचार कर रहे हैं।
अब ज़रा अपने देश के एक उदाहरण पर भी नज़र डाल लें। हाल में जिस नेता की मीडिया में सबसे ज़्यादा चर्चा रही उनका नाम है अर्जुन सिंह। पुराने कांग्रेसी खुर्राट हैं। उम्र है 78 साल। सत्ताइस बरस की उम्र में विधायक बन गए थे। तीन बार मध्य प्रदेश के सीएम रहे। केंद्र में मंत्री थे, हैं और ता उम्र बने रहना उनकी ख्वाहिश है। अर्जुन सिंह चाहते हैं कि जिएं तो मंत्री बनके, वरना मंत्री रहते हुए ही मर जाएं। इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार हैं। कभी राहुल बाबा को पीएम बनाने की बात करते हैं तो कभी कैबिनेट की मंज़ूरी के बग़ैर आरक्षण लागू करने का बयान दे डालते हैं। बार-बार उनको आगाह किया जाता है तो वफ़ादारी के क़िस्से सुनाकर विरोधियों को चुप कराने की कोशिश करते हैं। कभी चुरहट लॉटरी कांड में फंसे थे। कब के निकल गए पता तक नहीं चला। ऐसी सियासत करते हैं कि कभी राजीव गांधी ने तंग आकर उन्हें सक्रिय राजनीति से हटाने के लिए पंजाब का राज्यपाल बना दिया था। लेकिन कमाल है अर्जुन सिंह का, फिर से आ गए एक्टिव पॉलिटिक्स में। जब नरसिम्हा राव की सरकार थी तो उसमें मंत्री रहकर उनकी नाक में दम किए रहते थे। अब मनमोहन सिंह जैसे सीधे सादे आदमी की सरकार में मंत्री हैं तो उनकी नाक में दम किए हुए हैं। चाहते हैं कि मनमोहन को हटाकर उन्हें पीएम बना दिया जाए। भले ही वो चलने फिरने में लाचार हों। लेकिन अर्जुन सिंह शरीर की इस लाचारी को इतनी बड़ी बाधा नहीं मानते कि उनके पीएम बनने के रास्ते में आ सके। हाल ही में उन्होंने उदाहरण भी दे डाला दूसरे महायुद्ध के दौरान अमेरिका के सदर रहे फ्रैंकलिन डिलानो रूज़वेल्ट का। रूज़वेल्ट साहब के नाम कई रिकॉर्ड हैं। चार बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुने जाने वाले इकलौते शख्स थेय, कमर से नीचे लकवे के शिकार थे, लेकिन शरीर की इस कमज़ोरी को कभी दूसरा विश्व युद्ध जीतने की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। कितनी दिलचस्प बात है अर्जुन सिंह ने उदाहरण दिया तो एक अमेरिकी का ही। ख़ैर रूज़वेल्ट रूज़वेल्ट थे और अर्जुन सिंह तीरंदाज़ हैं। अब ज़रा सोचिए, एक तरफ जॉन मैक्केन हैं, अर्जुन सिंह से छै बरस छोटे ही हैं, लेकिन उम्र और बीमारी को लेकर सवाल उठे तो अपनी मेडिकल रिपोर्ट जनता में जारी कर दी। राष्ट्रपति बनने वाले हैं तो इमेज को साफ-शफ़्फ़ाफ़ रखना चाहते हैं। दूसरी ओर अर्जुन सिंह हैं जो वफ़ादारी के चालीस बरस पुराने क़िस्से सुनाकर पीएम बनना चाहते हैं। अभी हाल ही में यूपीए सरकार ने अपने चार साल पूरे होने का जश्न मनाया। अर्जुन सिंह भी पहुंचे थे। जितनी बार कोई नया नेता आता, फोटोग्राफर फोटो लेने पहुंच जाते, बेचारे अर्जुन सिंह को बार-बार उठने में इतनी दिक्कत हो रही थी कि पूछो मत। जब चलते हैं तो लगता है कि अब गिरे तब गिरे। ऐसा लाचार आदमी देश की शिक्षा व्यवस्था का बोझ ढो रहा है और पीएम बनने की ख्वाहिश भी। उधर जॉन मैक्केन हैं, फिट फाट दिखते हैं तेज़ चलते हैं फर्राटे से बोलते हैं। इधर अर्जुन सिंह हैं। हर चीज़ में दिक्कत ही दिक्कत। दोनों अपने अपने देश के बड़े सटीक प्रतीक हैं।
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