सोमवार, 19 मई 2008
ज़रूरत है इंक़िलाब की
ग़ुलाबी नगरी जयपुर में एक के बाद एक हुए सिलसिलेवार धमाकों को एक हफ़्ता हो गया है। जांच एजेंसियां तफ़्तीश में जुटी हुई हैं। लेकिन हफ़्ते भर में ये भी तय नहीं कर पाई हैं कि इन धमाकों के पीछे किस संगठन का हाथ है। उन्हें ये भी पता नही चल सका कि क्या इन धमाकों की साजिश में कोई स्थानीय आदमी शामिल था। उनकी जानकारी में ये भी नहीं कि धमाके करने के बाद सारे संदिग्ध कपूर की तरह कैसे लुप्त हो गए। जांच एजेंसियों की ये लापरवाही ही ऐसे घृणित काम करने वालों के हौसले बढ़ाती है। इससे पहले ख़ुफ़िया एजेंसियां भी जयपुर में रची जा रही साजिश को नहीं सूंघ पाईं। धमाके हुए और वो फौरन हरकत में आ गईं। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने मीडिया को बताया कि धमाकों को लेकर राजस्थान सरकार को पहले ही आगाह कर दिया गया था। राजस्थान सरकार ने फौरन कह दिया कि हमें तो कोई जानकारी नहीं मिली। धमाकों के दो दिन बाद केंद्रीय कैबिनेट की मीटिंग में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन ने माना कि जयपुर की घटनाओं की खुफिया एजेंसियों को ज़रा भी भनक नहीं लगी। यानी नाकारा निकलीं खुफिया एजेंसियां। इसका खामियाज़ा सत्तर लोगों औऱ सैकड़ों परिवारों ने भुगता। तो अब वक़्त है ज़िम्मेदारी तय करने का। जिस मीटिंग में नारायणन साहब ये मान रहे थे कि खुफिया एजेंसियां नाकाम रहीं। उसी में क्यों नहीं आईबी या रॉ के अधिकारी बुलाए गए। सिर्फ़ मेमो के ज़रिए लताड़ने से इन साहिबान की नींद नहीं खुलने वाली। उन्हें मालूम है कि हर ऐसी घटना के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शब्दों के बाण चलेंगे। ऐसी घटनाएं होने के फौरन बाद खुफिया एजेंसियां कमोबेश हर अहम शहर में ऐसी घटनाएं होने की आशंका ज़ाहिर करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं। इन काहिलों को बुलाकर क्यों न मौक़े पर ही बर्ख़ास्त करने की ज़लालत भरी सज़ा दी जाए। सिर्फ़ झिड़की से काम नहीं चलेगा। मुझे तो लगता है कि हर ऐसी घटना के बाद उन सारे अफसरान को SUMMARILY DISMISS कर दिया जाना चाहिए जिनकी ज़िम्मेदारी बनती है। ज़िम्मेदारियां तय करने का वक़्त आ गया है। ऐसे इंक़िलाब के लिए देश पुकार रहा है। दुखी आत्मा मनमोहन सिंह अब जांच के लिए एक केंद्रीय एजेंसी बनाने की बातें कर रहे हैं। क्या उन्होंने कोई मानक तय कर रखा था कि देश में इतनी आतंकी घटनाएं होने के बाद ही वो इस तरह के बयान देने से इस मिशन की शुरुआत करेंगे। आतंकवादी बेख़ौफ़ हमारे शहरों-गांवों-कस्बों में घूम रहे हैं। वो अपना संगठन मजबूत कर रहे हैं। वो जहां जी चाहे धमाके कर रहे हैं। वो बेगुनाहों को मार रहे हैं। देश की इमेज की वाट लगा रहे हैं। लेकिन खुफिया एजेंसियां सिर्फ़ ADVISORY जारी कर रही हैं। इन हरामख़ोरों को नंगा करके कोड़े लगाने की ज़रूरत है ताकि आती नस्लें ये समझें कि ख़ुफियागिरी का काम हंसी खेल नहीं,पूरी संजीदगी से करना होगा। आतंकवादियों के इरादों की जानकारी हासिल करनी होगी। उन्हें नापाक धमाके करने से रोकना होगा। इसके लिए खुफिया तंत्र में इंक़िलाब की सख़्त ज़रूरत है। इसकी शुरुआत पूरे मौजूदा ख़ुफिया तंत्र की बर्ख़ास्तगी से होनी चाहिए।
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