बुधवार, 15 अप्रैल 2015

अब गंगा सिर्फ हमारी होगी





"मैं तीन माओं का बेटा हूं। नफ़ीसा बेग़म, गंगा मां और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी। नफ़ीसा बेग़म आज नहीं हैं। मगर मेरी बाक़ी की दो माएं आज भी आबाद हैं।"

यूपी के ग़ाज़ीपुर के रहने वाले डॉक्टर राही मासूम रज़ा ने ये लाइनें अपनी क़िताब सीन 75 में लिखीं थीं। उन्होंने आगे ख़्वाहिश जताई थी कि मरने पर उन्हें गंगा में बहा दिया जाए, या फिर, अगर गंगा से दूर आख़िरी सांस लें तो उन्हें किसी दरिया में बहा दिया जाए....


वहीं, नज़ीर बनारसी लिखते हैं...

"सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के! हमने तो नमाज़ें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू करके"

गंगा...जो जीवनदायिनी है। गंगा जो मृत्यु के उपरांत मोक्षदायिनी भी है। उस गंगा ने किसी को जीवन देने के लिए, किसी का खेत सींचने के लिए किसी की मां बनने के लिए,किसी को मोक्ष देने के लिए, उस इंसान का मज़हब नहीं देखा। अपना पानी देने से पहले गंगा ने ये सवाल नहीं उठाया कि हे नर, तुम पहले यह स्पष्ट करो कि तुम कौन से मतानुयायी हो।

लेकिन, अब शायद गंगा को अपने दर पर आने वाले हर शख़्स से यह पूछना पड़े कि तुम सनातन धर्म मानते हो, या फिर मुहम्मद साहब के अनुयायी ठहरे, कहीं ईसापरस्त तो नहीं तुम? और अगर किसी ने ख़ुद को इस्लाम या फिर ईसाई धर्म का बताया तो, फिर गंगा, हुंकार मारकर चीखेगी कि दूर हो जाओ मेरी लहरों से...क्योंकि मैं अब राही मासूम रज़ा की मां नहीं रही। अब मैं नज़ीर बनारसी को भी वजू के लिए अपना पानी इस्तेमाल करने न दूंगी। और जो मेरी लहरों के क़रीब बैठकर सरहद पार से आए ग़ुलाम अली ने चैती या फिर ठुमरी गाई, तो समझ लेना कि मेरे अपार विस्तार के क़रीब जो भी आएगा वो हाहाकार कर उठेगा।


क्योंकि अब गंगा को मज़हब के दायरे में बांधा जाएगा। भले ही सूरज-चांद, दरिया-मौजें, मजहब की बंदिशें न मानती हों, पर अब गंगा को तो हर हाल में एक मज़हबी नदी बनाया जाएगा। क्योंकि हमारे एक माननीय ने ऐसा ही मुक़द्दर तय किया है हमारा। यूपी के ही गोरखपुर के महंत आदित्यनाथ अब कहते हैं कि गंगा के तट पर मुसलमानों के आने की मनाही होनी चाहिए। क्योंकि इससे नदी अपवित्र हो जाएगी। वो इसके लिए क़ानून बनाने की मांग भी करते हैं। 



यानी जीवनदायिनी गंगा अब केवल हिंदुओं का दरिया मानी जाए। उस पर राही मासूम रज़ाओं, नज़ीर बनारसियों का हक़ अब से ख़त्म माना जाए।

मैं, इलाहाबाद का रहने वाला हूं। जहां गंगा और गंगा जमुनी तहज़ीब दोनों के बख़ूबी दीदार होते हैं। इलाहाबाद से गंगा के किनारे-किनारे कानपुर की तरफ बढ़ें, तो कड़े धाम तक, गंगा किनारे मुसलमानों की अच्छी ख़ासी तादाद बसती है। इलाहाबाद से क़रीब बीस किलोमीटर दूर गंगा के दोआबी किनारे पर तो गद्दी मुसलमानों का ही कब्ज़ा है। वो यहां खेती करते हैं। साल के आधे हिस्से में तो इस पाट पर गंगा का कब्ज़ा रहता है और बाक़ी महीनों में गद्दी मुसलमानों का। बताते हैं कि गद्दी मुसलमान, हिंदू धर्म से कनवर्टेड हैं। आज उनके ख़ुदा भले अलग हों। मग़र, गंगा नदी से उन्हें वैसी ही मुहब्बत है, जैसी राही मासूम रज़ा को थी। पूरे इलाक़े को ये गद्दी मुसलमान अपनी मिल्कियत मानते हैं और इस पर अगर किसी ने आंख गड़ाई तो नौबत ख़ून ख़राबे तक पहुंच जाती है।

लेकिन, अब राज महंत आदित्यनाथ की पार्टी का है। जिसमें नया क़ानून बनेगा और मुसलमान को गंगा पर हर तरह के हक़ से महरूम कर दिया जाएगा।

फिर, गंगा ही क्यों, हिंदुस्तान की हर उस चीज़ से मुसलमान का ताल्लुक़ ख़त्म हो जाएगा, जिस पर हिंदू धर्म अपना हक़ जताए। मसलन पहले अगर दिवाली के त्यौहार पर नज़ीर अकबराबादी को बताशे हंसते और खीलें खिलखिलाती दिखती थीं, अब उस पर आदित्यनाथ की पाबंदी आयद होगी। 

नज़ीर ने दिवाली पर जो नज़्म लिखी थी, वो आज आख़िरी बार आप यहां पढ़ लें, इसके बाद ये नज़्म हमेशा के लिए हिंदुस्तान की तारीख़ से, इसकी याददाश्त से मिटा दी जाएगी। आख़िर काबा के आगे सिर झुकाने वाले को भगवान राम की घर वापसी का जश्न मनाने की इजाज़त दी ही कैसे जा सकती है भला...

हमें अदाएं दिवाली की ज़ोर भाती हैं
कि लाखों झमकें हरेक घर में जगमगाती हैं
चिराग जलते हैं और लौएं झिलमिलाती हैं
मकां मकां में बहारे हीं झमझमाती हैं

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

ग़ुलाबी बर्फ़ियों के मुंह चमकते फिरते हैं
जलेबियों के भी पहिए ढुलकते-फिरते हैं
हरेक दांत से पेड़े अटकते फिरते हैं
इमरती उछले है लड्डू ढुलकते फिरते हैं

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

मिठाइयों के भरे थाल सब इकट्ठे हैं
तो उन पै क्या ही खरीदारों के झपट्टे हैं
नबात, सेव, शकरकंद, मिश्री गट्टे हैं
तिलंगी नंगी है गट्टों के चट्टे बट्टे हैं

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

जो बालूशाही भी तकिया लगाए बैठे हैं

तो लौंज खजले यही मसनद लगाए बैठे हैं
इलायचीदाने भी मोती लगाए बैठे हैं
तिल अपनी रेवड़ी में ही समाए बैठे हैं


खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

उठाते थाल में गर्दन हैं बैठे मोहन भोग
यह लेने वालों को देते हैं दम में सौ-सौ भोग
मगज का मूंग के लड्डू से बन रहा संजोग
दुकां-दुकां पे तमाशे यह देखते हैं लोग

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

दुकां सब में जो कमतर है और लंडूरी है
तो आज उसमें भी पकती कचौरी-पूरी है
कोई जली कोई साबित कोई अधूरी है
कचौरी कच्ची है पूरी की बात पूरी है

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

कोई खिलौनों की सूरत को देख हंसता है
कोई बताशों और चिड़ों के ढेर कसता है
बेचने वाले पुकारे हैं लो जी सस्ता है
तमाम खीलों बताशों का मीना बरसता है

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

और चिरागों की दुहरी बंध रही कतारें हैं
और हरसू कुमकुमे कंदीले रंग मारे हैं
हुजूम, भीड़ झमक शोरोगुल पुकारे हैं
अजब मजा है अजब सैर है अजब बहारें हैं

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

कहीं तो कौड़ियों पैसों की खनखनाहट है
कहीं हनुमान पवन वीर की मनावट है
कहीं कढ़ाइयों में घी की छनछनाहट है
अजब मज़े की चखावट और खिलावट है

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

नज़ीर इतनी जो अब सैर है अहा हा हा
फ़क़त दिवाली की सब सैर है अहा हा हा
निषात ऐशो तरब सैर है अहा हा हा
जिधर को देखो अजब सैर है अहा हा हा

खिलौने नाचे हैं तस्वीरें गत बजाती हैं
बताशे हंसते हैं खीलें खिलखिलाती हैं

ये मुआ नज़ीर तो इतना ज़िद्दी था कि हिंदुअन के हर तीज त्यौहार पर मरदुए की नज़र थी। जे अगर दिवाली पर खील की खिलखिलाट पर फिदा हो जाता था तो इसे होली की हुड़दंग भी बहुत अच्छी लगती थी। अब देखो न महंत आदित्यनाथ जी...इस नज़ीरे ने क्या अंट शंट लिखा है होली पर....


हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार
एक तरफ से रंग पड़ता इक तरफ उड़ता गुलाल
ज़िंदगी की लज़्ज़तें लाती है होली की बहार
जाफरानी सजके चीरा आ मेरे साकी शिताब
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार
 तू बगल में जो हो प्यारे, रंग में भीगा हुआ
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार
और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां
तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार
नौ बहारों से तू होली खेल ले इस दम नज़ीर
फिर बरस दिन के ऊपर है होली की बहार

--नज़ीर अकबराबादी


मने आदित्यनाथ जी इस नज़ीर बनारसी की हिमाक़त तो देखिए। होली के बहाने इश्क़ फ़रमाए है और माशूक़ से दूरी पर काफ़िर हुआ जाए है।

लेकिन...अब बहुत हुआ...बर्दाश्त की भी एक हद होती है। मुसलमानों का धरम धरम और हिंदुअन का धरम कुछ नहीं। ऐसा अब नहीं चलेगा। क्योंकि योगी आदित्यनाथ अब महंत आदित्यनाथ हो गए हैं। उनका राज है। उनकी पार्टी का राज है। अब सब बंद कराया जाएगा। अब तो कैफी आज़मी की उस नज़्म को हिंदुस्तान के नक़्श से मिटा दिया जाएगा, जिसमें विवादित ढांचा ढहाए जाने पर ख़ुद भगवान राम हैरत में पड़ गए थे और अयोध्या छोड़कर चले गए थे। अब उस नज़्म को भी आख़िरी बार यहीं पढ़ लीजिए।

राम वनवास से जब लौट के घर में आए
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
रक़्स ए दीवानमगी जो आंगन में देखा होगा
छै दिसंबर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मिरे घर में आए
धर्म क्या उनका है क्या ज़ात है ये जानता कौन
घर न जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा लोग मेरे घर में आए
शाकाहारी हैं मिरे दोस्त तुम्हारे ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता ज़ख़्म जो मेरे सर में आए
पांव सरयू में अभी राम ने धोए भी न थे
नज़र आए वहां ख़ून के गहरे धब्बे
पांव धोए बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे
राजधानी की फिज़ा रास नहीं आई मुझे
छै दिसंबर को मिला दूसरा बनवास मुझे
--कैफी आज़मी (दूसरा बनवास)

राम को दूसरे बनवास पर भेजने वाले मिजवां के क़लमनिगार...अब महंत आदित्यनाथ तुम्हें माफ़ नहीं करेंगे। अब वो हिंदू और मुसलमानों के बीच बर्लिन की दीवार से भी मोटी और ऊंची दीवार उठाएंगे। वो बंद करा देंगे मुसलमानों का हिंदुओं से जुड़ी किसी भी चीज़ का नाम लेना। अब अली सरदार जाफरी को हिंदुस्तान में औरतों की हालत पर लिखते वक़्त हिंदू नहीं, मुसलमान किरदार ढूंढने होंगे....ज़रा देखिए तो सरदार की हिमाक़त....

ग़रीब सीता के घर पर कब तक रहेगी रावण की हुक्मरानी
द्रौपदी का लिबास उसके बदन से कब तक छिनेगा
शकुंतला कब तक अंधी तक़दीर के भंवर में फंसी रहेगी
ये लखनऊ की शगुफ़्तगी मक़बरों में कब तक दबी रहेगी

--अली सरदार जाफरी

आख़िर किसी मुसलमान को हिंदू सीता, द्रौपदी और शकुंतला के बारे में लिखने का हक़ हासिल हो गया। कैफ़ी ने कैसे राम को प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल कर लिया। राही मासूम रज़ा ने आख़िर किस अधिकार से गंगा को अपनी मां बता दिया। और वो नज़ीर अकबराबादी......आज होता तो महंत आदित्यनाथ की हिंदू युवा वाहिनी उसे अच्छा सबक़ सिखाती। कैसे उसने एक हिंदू...किशन मुरलीवाले के बालपन का मज़ा उठा लिया....देखिए तो...

यारो सुनो! दधि के लुटैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन
बन-बनके ग्वाल गौएं चरैया का बालपन
ऐसा ता बांसुरी के बजैया का बालपन
क्या-क्या कहूं मैं किशन कन्हैया का बालपन
--नज़ीर अकबराबादी

आख़िर कृष्ण तो केवल हिंदुओं के थे। उनके बाल स्वरूप का वर्णन लुत्फ़ ले लेकर, कोई पैग़म्बर साहब का अनुयायी कर ही कैसे सकता है भला। किशन पर तो केवल हिंदुओं का हक़ है। ठीक वैसे ही, जैसे आदित्यनाथ के हिसाब से गंगा सिर्फ़ हिंदुअन की है।

आख़िर किस हक़ से नज़ीर बनारसी ने ये लिख मारा कि....

गंगा का है लड़कपन, गंगा की है जवानी
इतरा रही हैं लहरें, शरमा रहा है पानी

लेकिन, बहुत हुईं ये  हिमाकतें। अब ये सब न चलेगा। बर्दाश्त न किया जाएगा। अब किसी साहिर को ये लिखने का हक़ न होगा के...

संसार से भागे फिरते हो, भगवान को तुम क्या पाओगे
इस लोक को तो अपना न सके, परलोक में भी पछताओगे

आख़िर अपने नग़मे में भगवान लफ़्ज़ लिखा ही क्यों साहिर लुधियानवी ने। साहिर को तो मक्के मदीने का ज़िक्र करना चाहिए था। तरक़्क़ीपसंदगी के नाम पर कुछ भी लिखते जाते हैं। अब तो हिंदोस्तान में किसी को भी नज़ीर बनारसी की इस सलाह पर अमल का अख़्तियार न होगा के...

मस्जिदों-मंदिर कलीसा (गिरजाघर) सबमें जाना चाहिए
दर कहीं का हो, मुक़द्दर आज़माना चाहिए

नज़ीर मुसलमान थे। तो, उन्हें अपने मज़हब की इबादतगाहों का ज़िक्र करना चाहिए। मंदिर में कौन जाए, हिंदू कहां अपना मुक़द्दर आज़माए, ये फ़ैसला अब महंत आदित्यनाथ करेंगे।

अब राम-किशन केवल हमारे होंगे। अब होली-दिवाली भी सिर्फ़ हमारी होगी। अब गंगा-यमुना भी हमारी ही होगी। क्योंकि गंगा तो हिंदुअन के भगवान शिव की जटाओं से निकली है। और यमुना है हिंदुओं के मृत्यु देवता यमराज की बेटी। अब किसी और मज़हब को मानने वाले का हक़ नहीं होगा कि गंगा का पानी इस्तेमाल करे, उसके घाटों पर बैठकर ठंडी मौजों का लुत्फ़ ले। अब गंगो जमन तहज़ीब का गंगा के किसी घाट पर अंतिम संस्कार किया जाएगा। इसका वक़्त और स्थान महंत आदित्यनाथ तय करेंगे...पर...आपको ज़रूर बताया जाएगा।





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