शनिवार, 23 जुलाई 2016

याद गली

जब याद गली से गुज़रे हम
तो बीते मौसम याद आए
कुछ जाने चेहरे मुस्काए
कुछ ग़म के साए क़रीब आए
जब घंटों बातें होती थीं
जिनके सिर पैर नहीं पाये
जब अकसर वो ख़ुश होते थे
जब रूठे तो हम मना लाए
वो उनका हाथ पकड़ चलना
हम अब तक भूल नहीं पाए
वो टुक-टुक देखती थीं आंखें
वो बातें करती थीं आंखें
वो बिन बोले हज़ारों बार
कितनी बातें बतला आए
अब वक़्त कहां वो दौर कहां
कोई कह दे उन्हें लौटा लाए
ये दूरी क्यों, ख़ामोशी क्यों
कोई तो यारो बतलाए
क्या वक़्त वो लौट नहीं सकता
जिसे जीकर फिर करार आए

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