रविवार, 11 मई 2008

जब मैने गाड़ी खरीदी

लोग अक्सर कहते हैं कि मेरा ये सपना था,वो ख्वाब था। मैं तो बस कर डालता हूं। सो कभी ये ख्वाब नहीं देखा कि गाड़ी ख़रीदूंगा,बस ख़रीद ली। Mahindra Renault की Logan. अब चलाना सीख रहा हूं। कल यानी 11 मई 2008 को पहली बार अपनी गाड़ी लेकर सड़क पर टहलाने निकला। लौटते वक़्त खरोंच लगा ली। पर तसल्ली रही कि सुरक्षित घर लौट आया। अब देखिए आगे क्या होता है।

विराम....

विराम तीन दिनों का रहा। जिस रोज़ पिछली बातें लिखीं उसके बाद से तो मानो सियापा हो गया। तीन दिन से वक़्त और मौक़ा नहीं मिल पा रहा है। यानी कोई प्रगति नहीं। ऐसे कैसे चलेगा। यही पूछा शालिनी ने। तो क्या जवाब दूं। लाजवाब जो हो गया। मेरे पास कोई तर्क नहीं हैं। सिवा एक के। मैं सोने के चक्कर में गाड़ी चलाने की प्रैक्टिस करने नहीं जा पा रहा हूं। टारगेट था कि 18 मई को गाड़ी लेकर ही ऑफिस आऊंगा। पर शुक्र है कि 18 मई को छुट्टी है। वरना ये टारगेट हासिल कर पाना मेरे बस में नहीं दिख रहा। कहते हैं जो जागा सो पाया, जो सोया सो खोया। और मैं सोकर, गाड़ी चलाने का लुत्फ़ खो रहा हूं। आमीन....

आख़िरकार मैंने तय कर लिया है कि जल्द से जल्द मुझे अपनी logan ड्राइव करने में आत्मविश्वास हासिल करना है। इसी सिलसिले में मैंने पहले 17 मई और फिर 18 मई को गाड़ी चलाने की प्रैक्टिस जमकर की। 19 को भी यही किया और 20 तारीख़ को मुझमें इतना आत्मविश्वास आ गया कि मैं गाड़ी लेकर पहले डॉक्टर को दिखाने और फिर वहां से हरौला सब्ज़ी लाने चला गया। गाड़ी को पार्क करने और फिर मोड़ने में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन ये इतनी ज़्यादा नहीं थी कि मेरे जज़्बे को ज़रा भी कम कर सके। हरौला का बाज़ार बेहद भीड़ भरा और संकुचित सा है। उसमें गाड़ी चलाकर मेरे अंदर ग़ज़ब का आत्मविश्वास आ गया। और आख़िरकार 20 मई की रात ज़ोरदार बारिश के बीच मैंने फ़ैसला किया कि आज LOGAN से ही दफ़्तर जाऊंगा। पत्नी को मनाने में थोड़ी मुश्किल हुई और ख़ुद को भी तैयार करना इतना आसान नहीं था। लेकिन परिस्थितिजन्य मजबूरी ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं भरी बारिश में निकल प़ड़ा अपनी गाड़ी से दफ्तर। दिल की धड़कनें इतनी तेज़ और बेक़ाबू कि मानो दिल शरीर से उछलकर बाहर आ जाने वाला हो। बहरहाल, ख़ुद की क़िस्मत और अपने ऊपर रही ईश्वर की मेहरबानी से मेरा यक़ीन बढ़ा और मैं चल निकला। कुछ ही दूर जाने पर दिल की धड़कनें सामान्य हो गईं और फिर मैं गाड़ी चलाने का लुत्फ़ उठाने लगा। अभी मैं यक़ीनी तौर पर तो गाड़ी नहीं चला पा रहा हूं। लेकिन कोशिश है कि ये ख़ुद पर का भरोसा मैं जल्द से जल्द हासिल कर लूं। अब जहां ,चाह वहां राह। देखते हैं आगे क्या होता है।

भयावाह विराम---
ज़रा सोचिए, किसी ने अभी जुम्मा-जुम्मा एक महीने पहले गाड़ी चलानी सीखी है और वो एक दिन तय करता है कि बिजली के खंबे को रौंदकर गाड़ी को आगे बढ़ाना है।

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